गुलाब की महक में बसा है सपनों का जहां,  
जहाँ बिधांता लिखता है किस्मत का गुमां।  
नदी किनारे बहता है शूक का संगीत,  
पर्णों पर ठहरी हुई हैं बीते लम्हों की प्रीत।  

सपनों की स्याही से रचे जाते हैं दिन,  
रातों की चादर पर जगती किरन की धुन।  
बिधांता के हाथों में छिपे हैं कई राज़,  
साँझा होते हैं वो, जो बुनते हैं अल्फ़ाज़।  

नदी की लहरों में बहते हैं अनकहे गीत,  
पर्णों की सरसराहट में मिलती है मन की जीत।  
छाया की गोद में सिमट जाते हैं आँसू,  
गुलाब की पंखुड़ियों में घुल जाते हैं हर कसू।  

किरण की पहली झलक से जागती हैं उम्मीदें,  
सपनों की राहों में बिखरती हैं अनगिनत जीतें।  
छाया के परे दिखती है रोशनी की धारा,  
जहाँ जीवन का अर्थ हर रोज़ संजोता है सहारा।  

साँझा है यह जहां, बाँधते हैं सबको प्यार,  
गुलाब के संग सपनों में खिलते हैं विचार।  
बिधांता की लिखावट में ढलते हैं ये दिन,  
नदी के किनारों पर चलता है समय का सृजन।