एक आवाज जो उठी थी,
एक आवाज जो दबा दी गई,
मौमिता देबनाथ, एक नाम इतना प्यारा,
एक जीवन जो अन्याय का शिकार हुआ।
उनके शब्द थे तेज, उनका दिल था साहसी,
उन्होंने सच्चाई के लिए आवाज उठाई,
लेकिन सत्ता के लोगों ने उन्हें नहीं बख्शा,
उनकी आवाज को दबा दिया, उनकी जान ले ली।
उनके सपने थे बड़े, उनकी आशाएं थी उच्च,
लेकिन अन्याय ने उन्हें कुचल दिया,
उनकी आवाज अभी भी हमारे कानों में गूंजती है,
एक न्याय की पुकार, एक इतनी स्पष्ट पुकार।
चलो हम उनकी आवाज को याद रखें,
चलो हम उनके लिए न्याय की मांग करें,
मौमिता की आवाज को दबाया नहीं जा सकता,
उनकी सच्चाई को दबाया नहीं जा सकता।
यह कविता मौमिता देबनाथ के मामले पर एक श्रद्धांजलि है, जो अन्याय का शिकार हुई और जिनकी आवाज को दबा दिया गया।