माँ नहीं, वो दोस्त है मेरी

सदा मेरी सुनती, कभी अपनी कहती।

 

मैं रूठ जाऊँ तो प्यार से मनाती वो,

कभी मैं उसकी गुड़िया, तो कभी मैं उसकी चिड़िया,

न जाने कितने प्यारे नामों से पुकारती मेरी माँ।

 

खुद भी हसती और मुझे भी हसाती,

मेरी परेशानी को सबसे पहले पहचान जाती।

 

पल भर में जादू से उसे सुलझाती,

माँ नहीं, वो दोस्त है मेरी

प्यारी सी वो मेरी चिड़िया रानी,

और मैं उसकी राज दुलारी।।